कविताएँ/ शायरी/ ग़ज़ल

कविताएँ/ शायरी/ ग़ज़ल :



बहुत नज़दीक आती जा रही हो

बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या

------- jaun elia

मैं स्पैनिश में कहती हूँ,

तुम हिब्रू में सुनते हो,

हम ब्रेल में पढ़े जाते हैंI

-------- Babusha kohli

पहले सात फेरे तुम उपसर्ग सा चलना दूसरे सात फेरे प्रत्यय सा चलना किसी समानार्थी शब्द की तरह जीवन भर रहना

--------Babusha kohli

रौशनी बाँटता हूँ सरहदों के पार भी मैं

हम-वतन इस लिए ग़द्दार समझते हैं मुझे

--------शाहिद ज़की


अक्स कितने उतर गए मुझ में

फिर जाने किधर गए मुझ में

मैं ने चाहा था ज़ख़्म भर जाएँ

ज़ख़्म ही ज़ख़्म भर गए मुझ में

मैं वो पल था जो खा गया सदियाँ

सब ज़माने गुज़र गए मुझ में

ये जो मैं हूँ ज़रा सा बाक़ी हूँ

वो जो तुम थे वो मर गए मुझ में

मेरे अंदर थी ऐसी तारीकी

के आसेब डर गए मुझ में

पहले उतरा मैं दिल के दरिया में

फिर समुंदर उतर गए मुझ में

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

अकबर इलाहाबादी

यूँ जो तकता है आसमान को तू

कोई रहता है आसमान में क्या

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता

एक ही शख़्स था जहान में क्या








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